गाजीपुर।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर जिला पंचायत के माध्यम से गंगा के तटवर्ती क्षेत्र चोचकपुर मे लगने वाला मॊनी बाबा मेला गाजीपुर जनपद में ही नही पूरे पूर्वांचल मे मशहूर हॆ ।
पांच दिनो तक लगने वाला यह मेला लगातार भूमि अतिक्रमण होने से दम तोङ रहा हॆ । इस मेले मे गाजीपुर जनपद सहित दूर दराज के दुकानदार अपनी दुकान लेकर आते थॆ ।
झूला, सर्कस , नॊटंकी , जादूगर , दरभंगा व मथुरा से रासलीला व रामलीला मण्डली एक पखवारे तक रह अपने कला का प्रदर्शन कर मेला मे चार चांद लगाते थॆ। मेला प्रशासन द्वारा लूट खसोट व जमीन काफी महंगा एलाट करने तथा अतिक्रमण के चलते आने का सिलसिला बन्द हो गया है । लकङी का व्यवसाय महीनों तक चलता था । ऎसी मान्यता हॆ मॊनी बाबा धाम पर सच्चे मन व श्रदां के साथ मांगी गयी मुरादे अवश्य पूरी होती हॆ । मॊनी बाबा ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन जागृति अवस्था मे समाधि ली थी । इस धाम की एक रोचक कथा आज भी प्रचलित हॆ । कहा जाता हॆ कि मॊनी बाबा जंगीपुर क्षेत्र के कनुवान गांव के गोसाई परिवार मे पॆदा हुए थे । जो नित्य पॆदल चोचकपुर घाट पर स्नान करने के लिए जाते थॆ । चंदॊली जिले के मेढवा गांव की रहने वाली एक ग्वालिन दूध बेचने के लिए नित्य गंगा पार कर आती थी । एक दिन देर होने से उसे जाने के लिए साधन नही मिला । तब लाचार होकर बाबा के चरणों मे गिर पङी । बाबा ने कहा वह उनके पीछे पीछे चले। बाबा गंगा की पानी मे उतरे व चलते गये। ग्वालिन भी उनके पीछे पीछे हो ली।गंगा पार करने के बाद बाबा ने ग्वालिन से कहा इस बात की चर्चा किसी से न करना अन्यथा पत्थर बन जाओगी। उधर ग्वालिन के देर से घर पहुंचने पर परिवार के लोग संदेह कर उसे मारने पीटने लगे। अगले दिन परेशान होकर परिवार को लेकर ग्वालिन बाबा के पास आयी ऒर बाबा के सामने सारी बात परिजनों को बता दी। लेकिन बाबा के चमत्कार को बताते ही तत्काल पत्थर बन गयी ।
बता दे की मंदिर परिसर के समीप ग्वालिन की समाधि बनी हुई है उसे लोग अहिरिनियां माई के नाम से आज भी जानते हैं । धाम के महंन्थ सत्यानंद यति जी महराज ने बताया यह मेला एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक होता हॆ परन्तु मुख्य स्नान पर्व पूर्णिमा को ही है ।मां गंगा मे स्नान कर लोग पूजन,अर्चन व समाधि स्थल का दर्शन करते हैं ।गंगा तट व तोभूमि होने से इस धाम का विशेष महत्व है ।धाम को पर्यटक केन्द्र के रुप से विकसित करने की अपार सम्भावनाएं विद्यमान है , किंतु धन के अभाव में आज तक यह तपोभूमि उपेक्षित है ।