गाजीपुर ।
जिले के इतिहास में यहां के राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा स्वतंत्रता आंदोलन (1857 से 1942) को समेटे हुए पहली पुस्तक अंग्रेजी में होगी जिसे शहर गाजीपुर के जनाब उबैदुर्रहमान साहब ने लिखा है ।
यह पुस्तक 1052 पृष्टों पर आधारित हैं जिसमे गाजीपुर के प्राचीन इतिहास , सल्तनत काल , मुगल काल से लेकर , सर सैयद अहमद खान के आगमन, प्राचीनकाल से ब्रिटिश काल तक की शिक्षा व्यवस्था, 600 वर्षो से 1857 तक के साहित्य पर चर्चा है, 1029 ईस्वी से अवधकाल तक के हिंदू सूफी संत, जनपद के 600 वर्ष से लेकर अबतक मठ, मंदिर, खानकाह को, मुगलकाल में सैंकड़ों बीघा जमीन मुफ्त धार्मिक अनुष्ठानों के लिए दिए जाना, हिंदू राजाओं के आगमन से लेकर दिल्ली के सुल्तान, मुगल बादशाहों के गाजीपुर में आने पर…. किताबों , दुर्लभ दस्तावेजों, पांडुलिपियों, पर आधारित चर्चा है। इस पुस्तक में विस्तार से उन पुस्तकों पर भी टिप्पणी है जिसमे गलत सूचनाएं दी गई थी , तोड़ मरोड़ कर इतिहास लिखा गया है । उनका उस क्षेत्र से कुछ लेना देना नही था।
बता दे की इस पुस्तक में, विशेष ध्यान यह दिया गया है कि रेफरेंस based रहे और इसके लिए देश तथा विदेश से प्रमाण इकट्ठे किए गए हैं क्योंकि इतिहास तभी प्रमाणिक माना जाता है जब किसी क्षेत्र का इतिहास मान्यताओं पर न होकर तत्कालीन ओरिजिनल श्रोत पर आधारित रहे. चूंकि यह पुस्तक आम पुस्तक नही है , इसे अंग्रेजी भाषीय विद्वान लोग ही पढ़ पाएंगे जिन्हे अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ है। देखा जाए इस पुस्तक को उबैदुर्रहमान साहब ने भारत में स्थित यूनिवर्सिटीज , शोध संस्थानों तथा विदेशी विद्वानों तथा वहा स्थित शैक्षिक संस्थानों को मद्देनजर रख कर लिखी है ताकि गाजीपुर के इतिहास से लोग परिचित हो सके । हमारे जनपद के गुजरे हुए लम्हों को वे पढ़ सकें , जिनसे जनपद के इतिहास से लोग परिचित होंगे, या सच भी है कि देश या फिर परदेश के इतिहास को लिखने के लिए बहुत सी पुस्तके मिल जाती है लेकिन किसी खास क्षेत्र या किसी विशेष तबके पर लिखना , बहुत ही मुश्किल रहता है. उसके लिए न किताबे होती हैं और न ही कोई श्रोत होता है. इतिहास की दुनिया में, इसको माइक्रो इतिहास कहा जाता है. जो निहायत मुश्किल काम होता है… जैसे शेरनी का दूध निकालना , जहां हर मार्ग पर अंधेरा ही अंधेरा दिखे. ऐसे में रोशनी की किरणों को तलाश करना आसान नहीं रहता है।
पुस्तक को लिखने के लिए जनपद में बादशाह शाहजहां के दौर से 1900 तक लिखी गई 14 पांडुलिपियों , 442 देसी विदेशी विद्वानों द्वारा लिखी गई पुस्तकों , नौ (9) विदेशी जनपद में आनेवाले यात्रियों के यात्रा विवरण , बादशाहो के साथ चलने वाले 4 विद्वान द्वारा आंखों देखा हाल , 32 बादशाहो के शाही फरमान , जनपद पर आठ ब्रिटिश कलक्टर के संस्मरण पर आधारित पुस्तको का सहारा लिया गया है।
फारसी, अरबी, कैथी, ब्रजभाषा, अवधी, उर्दू तथा अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान होना और उसमे से गाजीपुर के तथ्यों को इकट्ठा करना और फिर उन्हें अंग्रेजी भाषा में ऐसा लिखना कि भाषा का एक मियार रहे । उसका अपना एक फ्लेवर हो , क्योंकि किसी भी शोध परक पुस्तकों की अपनी एक शैली है. उनकी एक अलग दुनिया है ।
भारत की शोध संस्थानों में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी, गाजीपुर कलेक्ट्रेट के आर्काइव, जयपुर आर्काइव, नेशनल आर्काइव दिल्ली, लखनऊ आर्काइव , रीजनल आर्काइव पर्यागराज, सीतापुर मऊ आर्काइव से, और लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी और संग्रहालय से पुस्तकें तथा दस्तावेजस्त इकट्ठे किए हैं। शीघ्र यह पुस्तक आनेवाली है. गाज़ीपुर का इतिहास उस दिन एक नई करवट लेगा और एक बड़े फलक पर यह पुस्तक दस्तक देगी, ऐसी उम्मीद की जाती है।