
गाजीपुर ।
जहाँ एक ओर भारत सरकार और उत्तर प्रदेश की प्रदेश सरकार लगातार यह दावा कर रही हैं कि वे नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए कृतसंकल्पित हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है । सरकार तो निरंतर बड़े-बड़े दावे कर रही हैं , वहीं गाजीपुर जिले का ट्रॉमा सेंटर सरकारी दावों की पोल खोलता नज़र आ रहा है। वर्षों के इंतज़ार के बाद जनपद को मिला यह बहुप्रतीक्षित ट्रॉमा सेंटर आज खुद एक सवाल बन गया है — क्या यह जीवन रक्षक केंद्र है या फिर भ्रष्टाचार और लापरवाही का नमूना?
यह जिला चिकित्सालय का ट्रॉमा सेंटर — जिसे जनपदवासियों ने वर्षों तक एक उम्मीद की तरह देखा — आज खुद एक सवाल बन गया है । सवाल यह कि क्या यह ट्रॉमा सेंटर वास्तव में लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने के लिए बनाया गया है, या फिर यह कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के लिए मात्र एक कमाई का जरिया बन गया है ?
सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि जिला चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय के ठीक सामने में बने ट्रॉमा सेंटर में विद्युत आपूर्ति की समुचित व्यवस्था तक नहीं है । जैसे ही बिजली जाती है, पूरा सेंटर अंधेरे में डूब जाता है। न तो जनरेटर सही से कार्य करता है, और न ही बैकअप की कोई प्रभावी व्यवस्था है। मरीज, स्टाफ और उनके परिजन सभी हाथ में मोबाइल की टॉर्च लेकर इधर-उधर भटकते नज़र आते हैं।
बीते कुछ दिनों से लगातार देखा गया है कि बिजली जाते ही सेंटर के बाहर अफरा-तफरी मच जाती है। मरीजों को स्ट्रेचर पर अंधेरे में ले जाना पड़ता है और स्टाफ मोबाइल की टॉर्च से काम करने को मजबूर है। ऐसे में आपातकालीन सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
यह ट्रॉमा सेंटर एक ड्रामा सेंटर बन गया है। जनता और सरकार की आंखों में धूल झोंक कर यहाँ न सिर्फ सरकारी योजनाओं का मज़ाक उड़ाया जा रहा है, बल्कि आम आदमी के जीवन और सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया जा रहा है। अधिकारियों द्वारा जनता के पैसे का इस तरह से बंदरबांट होना निंदनीय ही नहीं, दंडनीय भी है।
ज्ञातव्य हो कि इस ट्रॉमा सेंटर का निर्माण लाखों रुपये की लागत से किया गया था , जिससे जिले के लोगों को बेहतर आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं मिल सकें। लेकिन फिलहाल यह भवन मात्र एक ढांचा बनकर रह गया है, जहाँ सुविधाओं का भारी अभाव है। स्थानीय लोग इसे “ड्रामा सेंटर” की संज्ञा देने लगे हैं।
जनता का आरोप है कि कुछ अधिकारियों ने इस सेंटर को केवल अपने फायदे का साधन बना लिया है। बिजली, उपकरण, सफाई और स्टाफ की नियमितता जैसी बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं ।
*प्रशासन मौन, जिम्मेदार कौन?*
सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रशासन इस पूरी स्थिति पर चुप्पी साधे बैठा है। ना तो किसी प्रकार की कार्रवाई की गई है, ना ही व्यवस्था सुधारने के कोई ठोस संकेत मिले हैं।
अब सवाल यह उठता है :–
आखिर ज़िम्मेदार कौन है ?
और क्या आम जनता की ज़िंदगी यूँ ही जब किसी दिन लापरवाही की भेंट चढ़ेगी तब प्रशासन जागेगा ?
ट्रॉमा सेंटर की नियुक्तियों और खर्चों का ऑडिट कराया जाए ,
और जवाबदेह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
जब तक गाजीपुर का ट्रॉमा सेंटर पूरी तरह से क्रियाशील और पारदर्शी नहीं बनता, तब तक यह केवल एक ईंट-पत्थर का ढांचा रहेगा, न कि जीवन बचाने वाला केंद्र ।